Shiv Puran Katha Part 1 शिव पुराण कथा

                   

   ॐ नमः शिवाय 

 महापुराण  का वर्णन 

महाशिव पुराण की महिमा को ,अपने शब्दों मे सुनाता हूँँ ।

पदपंकज शिव के चरणों मे ,मै अपना शीश   झुकाता हूँ । 

हुआ समागम महारिशिओ का ,आये सब ॠषि मुनि ज्ञानी। 

शिव कथा सुनेगे हषित मन ,सबने मन मे थी ठानी । 

पुलकित तन खुश मन होकर ,वादन किये थे सूत जी से ?

नमस्कार हे  अंतरजमी ,कथा सुनावे  शिव जी के ।।

भावार्थ ;

बीते यूगो की इतिहास बताता हे कि एक बार ऋषि महर्षिओ का बहुत बड़ा समागम हुआ था । उस समागम मे   ज्ञानवान ऋषि मुनिओ  ने भगवान व्यास जी के प्रिय शिष्य सूत जी से  विनमरतापूर्वक आग्रह किया कि हे महारिशी श्रेष्ट सूत जी हम सब को शिव जी की उतम कथा सुनने की प्रबल अभिलाषा है अत :हे देव शोणकाधिक आदि सभी ऋषि मुनिओ को भोलेनाथ की महिमा रूपी अमृत इस अपने मुखारबिंद से वर्ष कर सराबोर कर डाले ।

यह शिव पुराण कथा का प्रारंब है इस आर्टिकल में जो भी लिखा है सब शिव पुराण से लिया गया है।

नमः पार्वती पतये हर हर महादेव।

आप सभी जानते हैं कि शिव पुराण बहुत बड़ा ग्रंथ है अतः इसको एक ब्लॉग में नही लिख सकते , इसी लिए इसके कई सारे भाग बनाए है । उम्मीद है आपको पसंद आयेंगे।


चौपाई – देवों में देव महादेव की महिमा, श्री मुख से देव बखान करें। 

जो सृष्टि प्रलय की गरिमा है, उन देवों का गुणगान करें।।

भावार्थ :– हे सूत जी देवताओं के देवता महादेव की महिमा को अपने श्री मुख से बयान कर हम सब साधु जनों को धन्य करें। जो देव सृष्टि और प्रलय करने की क्षमता रखते हों उन त्रिशूलधारी कैलाशवासी का गुणगान सुनाकर कृतार्थ करें।

दोहा:– सुनकर संतन की वाणी, हर्षित हुए मुनिराज।

जो शिव ने सुनाए सन्तकुमार को, सुना रहा हूं आज।।

भावार्थ:– ऋषियों की वाणी सुनकर प्रसन्नचित्त होकर श्री सूत जी बोले हे ऋषिगण आप बंदना करने योग्य हैं इसी लिए ही आप ने शिव पुराण सुनने की इच्छा प्रगट की । सब पापों से मुक्ति दिलाने वाले इस शास्त्र का वर्णन भगवान शंकर ने अपने श्री मुख से श्री सनतकुमार जी को सुनाए थे।

चौपाई :–ऋषिजन वचन सुने सूत देवा । चरण बंदना किए महादेवा।

शिव महिमा जो आज बखानू। दुर्लभ देव अप्सरा जानु।।

भावार्थ :– भगवान श्री शिव के चरणो की बंदना कर श्री सूत जी कथा प्रारंभ करते हुए बोले कि हे ऋषिगण मैं आज वो महापुराण की महिमा सुना रहा हूं जो देवताओं एवम अप्सराओं तक को दुर्लभ है। स्वयं भगवान शंकर ने इसे सनत्यकुमार जी को सुनाई थी इसीलिए सत्रवन पठन एव मन से कलयुगी महाघोर पापी भी मरनोप्रांत शिवधाम जरूर जाता है । एक बार भी संपूर्ण शिव पुराण जो भी मानव पड़ ले या सुन ले उसका समस्त पाप नाश उसी वक्त हो जाता है और यह पापी इन्सान गंगाजल की तरह पवित्र होकर अन्त में शिव धाम को प्राप्त करता है।


दोहा :– शिव पुराण जो करे नर सेवा ।

न्मांतर गोद रहे महादेवा।।

भावार्थ :– शिव पुराण को लाल कपड़े में लपेटकर कर जो व्यक्ति भाव ,प्रेम और भक्तिपूर्वक रखता है वह प्राणी सदेव जन्म जन्म तक भगवान शंकर की गोद में समा जाता है।        

दोहा :- श्री सनतकार ने शिववाणी ,श्री वेदवायास को जना दिये  ।

            श्री वेदवायास ने जग तारण को श्री मुख से हमको सुना दिये ।।

भावार्थ:- हे ऋषिगणों श्री सनत्यकुमार जी ने जब अमरतव वाणी भगवान शिव के मुख से सुनी ,तो उनसे रहा न गया । उनके दिल मे समस्त जीवों को तारने की आकक्ष  उतपन हुई ,ये जानकर उन्होंने महापुराण की महिमा हमे सुनाकर धन्य कर दिये जिसे मे आज आप सबों को सुनाने जा रहा हू । इस महापुराण के श्रवण मात्र से ही राजसूई यज्ञ का फल प्राप्त होता हे । इतना ही नहीं ,जो प्राणी यह महापुराण की महिमा को सुनता हे या सुनकर आ रहा हो उस प्राणी को शिवरूप समजकर उनकी चरणरज लेने से ही प्राणी के जन्म जन्मनतर के पापों का विनाश हो जाता हे। यदि मानव के पास समय का अभाव हो तो वह नित्य दिन किसी वख्त थोड़ा सा समय निकालकर ही इसके पाठ को पड़े या श्रवण करे तो समस्त क्लेश na               हो जाते हे । उसे समस्त          के दान ओर      का फल          ही प्राप्त हो जाता हे।    

दोहा:- महिमा अमृत घट के समाना  

       पावे श्रवण सदा सुख नाना ।।                                                                                                           भावार्थ:- पापी जनों ओर अद्ररमिओ के लिए यह पुराण          अमृत घट के समान हे।  जिस तरह अमृत पान करके` प्राणी अम्रताव को प्राप्त करता हे ,उसी परकार इस महापुराण के      अपने परिवार के समस्त प्रणियों के भी पापों  को          करके नाना परकार के सुखों को प्राप्त करते हे 

दोहा:- महापुराण मे सात सहिता , चोबीस हजार हे लोक

        जो नर पड़ते शिव महिमा , जाये वो शिव लोक।।                                                                 भावार्थ:- इस          महापुराण मे सात           हे। इन सातों            मे 24 हजार शलोक हे। इन शलोको मे         ,                     का अटूट भण्डार ओर डमरू वाले बाबा का       प्यार भरा हुया हे। इन सातों           का नाम इस हे ।  

इन सातों            वाला शिव महापुराण प्राणी को परमगति परदानं करने वाला हे ।  इसे पड़ने या सुनने से ही प्राणी भवसागर के समस्त          से मुक्त होकर                शिव लोक           हो जाता हे । भग     शंकर ने खुद ही अपने श्री मुख से सनत्यकुमार जी को कहे थे ,हे मुनिजी यह महापुराण जो अपने घर मे रखकर पूजन करेगा उसके घर मे हर वख्त निवास करुग । जिस घर मे यह महापुराण रखा जाता हे वह             हो जाता हे । इसके               ओर                           का फल प्राप्त होता हे । यह महापुराण                  देवतायो को      से भी            हे । इस महापुराण की हम लोग जितनी भी वन्दना करे उतना ही कम होगा । 

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